Desh Bhakti Kavita in Hindi 2024 | प्रेरणादायक देशभक्ति कविताएँ

Desh Bhakti Kavita in Hindi

Desh Bhakti Kavita in Hindi : अगर आप अपने देश से प्रेम करते है और देश के लिए मर मिटने के लिए तत्पर रहते है तो हम यही से अंदाजा लगा सकते है की आप एक सच्चे देश भक्त हो अक्सर देश भक्त देश भक्ति कविता पढने का इक्छुक रहते है।

इसलिए हम उन देश भक्तो के लिए बेस्ट प्रेरणादायक देशभक्ति कविताएँ उपलब्ध कराये है जिसे पढ़कर आपके अन्दर देश के प्रति और में स्नेह और उत्साह बढेगा यहाँ दिए गये हर एक देश भक्ति कविता हर एक देश भक्त को पढना चाहिए

अगर आप चाहे तो इन देश भक्ति कविताओ को 15 अगस्त या 26 जनवरी को कार्यक्रम के अवसर पर बोल सकते है आइये Best Desh Bhakti Kavita पढ़ते है।

Desh Bhakti Kavita in Hindi

सरहद के प्रहरी.. (1)

ओ सरहद के चौकस प्रहरी,
कमर कस तैयार हो जाओ।
तोड़ दो सारी रस्में कस्में,
समर क्षेत्र की बिगुल बजाओ।।

आज मुसीबत आन पड़ी है
खतरे में वतन की जान पड़ी है।
दिखा दो अपना बल पौरूष तुम,
आज वतन को आस बड़ी है।।

सन् ’47’ का वो वादा
’62’ का मजबूत इरादा
’71’ में जो दिखलाया
अटल-विजय का अविचल माद्दा ।।

फिर से वहीं इक बार दिखा दो,
समर विजय का पाठ पढ़ा दो ।
देखो दुश्मन डोल रहा है,
आज मौत की नींद सुला दो ।।

वक्त की भी है यही पुकार,
सुनों!,सरहद के पहरेदार ।
लिख डालो लहू से विजय-गाथा,
जिसे याद करे सदियों संसार ।।

जिसका इंतजार था अरसो से
अखियाँ तरसी थी बरसों से
आ गई अब वो घड़ी सुनहरी
अपने मन की प्यास बुझाओ।।

ओ सरहद के चौकस प्रहरी
कमर कस तैयार हो जाओ
तोड़ दो सारी रस्में कस्में,
समर क्षेत्र की बिगुल बजाओ।।

तुम वतन के हो सिरमौर सरताज,
दिखा दो ये दुनियाँ को आज
कांप उठे धरती अम्बर भी,
करो ऐसी वीरता का आगाज।।

आज रैन बड़ी ही काली है
मुश्किल की अमावस वाली है।
कहीं देखो इसमें भटक न जाना
तुमसे ही वतन रखवाली है ।।

इससे पहले कोई तूफां आए
दुश्मन कोई अपना बाण चलाए।
तुम उठा लो अपना ‘पौरुष’ गांण्डीव,
दुश्मन का दो नामों-निशान मिटाए।।

आज इम्तिहान की बेला है,
जीवन-मृत्यु का मेला है।
तुम साबित कर दो रण कौशल से
‘भारत वर्ष’ अलबेला है

तुम आगे बढ़ो ना देर करो,
विजय को, ऐ मेरे शेर ! करो।
सरहद पे छाया आंतक अंधेरा,
मिटा कर,अमन-सवेर करो।।

अब देर कहाँ किस बात की,
कैसा दिन, कैसी रात की ।
कर के शत्रु पर वज्र प्रहार,
विजय की अनुपम दीप जलाओ ।।

ओ सरहद के चौकस प्रहरी,
कमर कस तैयार हो जाओ।
तोड़ दो सारी रस्में कस्में,
समर क्षेत्र की बिगुल बजाओ।।

👉लेखक – अनुपम अनुराग

सैनिक की वर्दी.. (2)

ये वर्दी ऐसे नही आती,
प्राणप्रिय प्रियतमा की पीर ।
हृदय छलनी कर जाती,
ये वर्दी ऐसे नही आती……
ये वर्दी ऐसे नही आती…

ये वर्दी है,राम का वल्कल,
शंकर की मृगछाला,
जिसे पहनकर वीर झूमते।
सरहद की मधुशाला…

महाराणा के रण-कौशल मे,
नित् …वीरों को नहलाती….
ये वर्दी ऐसे नही आती…….
ये वर्दी ऐसे नही आती……

निज-प्राण को गिरवी रख,
पौरूष प्रहरी बन जाता,
मन से केशव भजने वाला,
रण-केसरी बन जाता….

जिसे सिलकर दर्जी की,
सात पीढ़ी तर जाती….
ये वर्दी ऐसे नही आती…….
ये वर्दी ऐसे नही आती ……

सरहद पे जो अपने हैं,
वो,सुहागरात के सपने हैं,
नीर-नयन की…..हीर को ढूढ़े,
वीरगति,………. वीर को ढूढ़े…

विरह हृदय की व्याकुल ज्वाला,
हिम-सिखा पिघलाती…..
ये वर्दी ऐसे नही आती….
ये वर्दी ऐसे नही आती……

इस वर्दी की कीमत क्या..?
उस माँ के कलेज से पूछो,
बिन सलवट के तड़प रही,
वीरांगना की सेज से पूछो…

सोचों….वो भी क्या दृष्य होगा,
जब तिरंगे मे लिपट जाती…
ये वर्दी ऐसे नही आती…..
ये वर्दी ऐसे नही आती…..

👉लेखक – अनुपम अनुराग

जय जय भारतवर्ष प्रणाम.. (3)

जय जय भारतवर्ष प्रणाम!
युग-युग के आदर्श प्रणाम!

शत्-शत् बंधन टूटे आज बैरी के प्रभु रूठे आज,
अंधकार हे भाग रहा जाग रहा है तरुण विहान!

जय जाग्रत् भारत संतान, जय उन्नत जनता सज्ञान !
जय मज़दूर, जयति किसान! वीर शहीदों तुम्हें प्रणाम!

धूल भरी इन राहों पर पीड़ित जन की आहों पर,
किए उन्होंने अर्पित प्राण वीर शहीदों तुम्हें प्रणाम!

जब तक जीवन मुक्त न हो क्रंदन- बंधन मुक्त न हो.
जब तक दुनिया बदल न जाए सुखी शांत संयुक्त न हो !

देशभक्त मतवालों के हम सब हिम्मत वालों के,
आगे बढ़ते चलें कदम, पर्वत चढ़ते चलें क़दम!

👉लेखक – शंकर शैलेन्द्र

वह खून कहो किस मतलब का.. (4)

वह खून कहो किस मतलब का जिसमें उबाल का नाम नहीं ।
वह खून कहो किस मतलब का आ सके देश के काम नहीं ।।

वह खून कहो किस मतलब का जिसमें जीवन, न रवानी है ।
जो परवश होकर बहता है, वह खून नहीं, पानी है ।।

उस दिन लोगों ने सही-सही खून की कीमत पहचानी थी ।
जिस दिन सुभाष ने बर्मा में मॉंगी उनसे कुरबानी थी ।।

बोले, “स्वतंत्रता की खातिर बलिदान तुम्हें करना होगा ।
तुम बहुत जी चुके जग में, लेकिन आगे मरना होगा ।।

आज़ादी के चरणें में जो, जयमाल चढ़ाई जाएगी ।
वह सुनो, तुम्हारे शीशों के फूलों से गूँथी जाएगी ।।

आजादी का संग्राम कहीं पैसे पर खेला जाता है ।
यह शीश कटाने का सौदा नंगे सर झेला जाता है ।।

यूँ कहते-कहते वक्ता की आंखों में खून उतर आया ।
मुख रक्त-वर्ण हो दमक उठा दमकी उनकी रक्तिम काया ।।

आजानु-बाहु ऊँची करके, वे बोले, “रक्त मुझे देना ।
इसके बदले भारत की आज़ादी तुम मुझसे लेना ।।

हो गई सभा में उथल-पुथल, सीने में दिल न समाते थे ।
स्वर इनकलाब के नारों के कोसों तक छाए जाते थे ।।

“हम देंगे-देंगे खून” शब्द बस यही सुनाई देते थे ।
रण में जाने को युवक खड़े तैयार दिखाई देते थे ।।

बोले सुभाष, “इस तरह नहीं, बातों से मतलब सरता है ।
लो, यह कागज़, है कौन यहॉं आकर हस्ताक्षर करता है ।।

इसको भरनेवाले जन को सर्वस्व-समर्पण काना है ।
अपना तन-मन-धन-जन-जीवन माता को अर्पण करना है ।।

पर यह साधारण पत्र नहीं, आज़ादी का परवाना है ।
इस पर तुमको अपने तन का कुछ उज्जवल रक्त गिराना है ।।

वह आगे आए जिसके तन में खून भारतीय बहता हो ।
वह आगे आए जो अपने को हिंदुस्तानी कहता हो ।।

वह आगे आए, जो इस पर खूनी हस्ताक्षर करता हो ।
मैं कफ़न बढ़ाता हूँ, आए जो इसको हँसकर लेता हो ।।

सारी जनता हुंकार उठी हम आते हैं, हम आते हैं ।
माता के चरणों में यह लो, हम अपना रक्त चढाते हैं ।।

साहस से बढ़े युवक उस दिन, देखा, बढ़ते ही आते थे ।
चाकू-छुरी कटारियों से, वे अपना रक्त गिराते थे ।।

फिर उस रक्त की स्याही में, वे अपनी कलम डुबाते थे ।
आज़ादी के परवाने पर हस्ताक्षर करते जाते थे ।।

उस दिन तारों ने देखा था हिंदुस्तानी विश्वास नया ।
जब लिक्खा महा रणवीरों ने ख़ूँ से अपना इतिहास नया ।।

👉लेखक – गोपाल प्रसाद व्यास

हमें मिली आज़ादी..(5)

आज तिरंगा फहराता है अपनी पूरी शान से ।
हमें मिली आज़ादी वीर शहीदों के बलिदान से ।।

आज़ादी के लिए हमारी लंबी चली लड़ाई थी ।
लाखों लोगों ने प्राणों से कीमत बड़ी चुकाई थी ।।

व्यापारी बनकर आए और छल से हम पर राज किया ।
हमको आपस में लड़वाने की नीति अपनाई थी ।।

हमने अपना गौरव पाया, अपने स्वाभिमान से ।
हमें मिली आज़ादी वीर शहीदों के बलिदान से ।।

गांधी, तिलक, सुभाष, जवाहर का प्यारा यह देश है ।
जियो और जीने दो का सबको देता संदेश है ।।

प्रहरी बनकर खड़ा हिमालय जिसके उत्तर द्वार पर ।
हिंद महासागर दक्षिण में इसके लिए विशेष है ।।

लगी गूँजने दसों दिशाएँ वीरों के यशगान से ।
हमें मिली आज़ादी वीर शहीदों के बलिदान से ।।

हमें हमारी मातृभूमि से इतना मिला दुलार है ।
उसके आँचल की छैयाँ से छोटा ये संसार है ।।

हम न कभी हिंसा के आगे अपना शीश झुकाएँगे ।
सच पूछो तो पूरा विश्व हमारा ही परिवार है ।।

विश्वशांति की चली हवाएँ अपने हिंदुस्तान से ।
हमें मिली आज़ादी वीर शहीदों के बलिदान से ।

👉लेखक – सजीवन मयंक

स्वतन्त्रता दिवस..(6)

आज से आजाद अपना देश फिर से!

ध्यान बापू का प्रथम मैंने किया है ।
क्योंकि मुर्दों में उन्होंने भर दिया है ।।


नव्य जीवन का नया उन्मेष फिर से ।
आज से आजाद अपना देश फिर से ।।

दासता की रात में जो खो गये थे ।
भूल अपना पंथ, अपने को गये थे ।।

वे लगे पहचानने निज वेश फिर से ।
आज से आजाद अपना देश फिर से ।।

स्वप्न जो लेकर चले उतरा अधूरा ।
एक दिन होगा, मुझे विश्वास, पूरा ।।

शेष से मिल जाएगा अवशेष फिर से ।
आज से आजाद अपना देश फिर से ।।

देश तो क्या, एक दुनिया चाहते हम ।
आज बँट-बँट कर मनुज की जाति निर्मम ।।

विश्व हमसे ले नया संदेश फिर से ।
आज से आजाद अपना देश फिर से ।।

👉लेखक – हरिवंशराय बच्चन

घायल हिन्दुस्तान..(7)

मुझको है विश्वास किसी दिन ।
घायल हिंदुस्तान उठेगा ।।

दबी हुई दुबकी बैठी हैं ।
कलरवकारी चार दिशाएँ ।।

ठगी हुई, ठिठकी-सी लगतीं ।
नभ की चिर गतिमान हवाएँ ।।

अंबर के आनन के ऊपर ।
एक मुर्दनी-सी छाई है ।।

एक उदासी में डूबी हैं ।
तृण-तरुवर-पल्लव-लतिकाएँ ।।

आंधी के पहले देखा है ।
कभी प्रकृति का निश्चल चेहरा ।।

इस निश्चलता के अंदर से ।
ही भीषण तूफान उठेगा ।।

मुझको है विश्वास किसी दिन ।
घायल हिंदुस्तान उठेगा ।।

👉लेखक – हरिवंशराय बच्चन

चल तू अकेला…(8)

तेरा आह्वान सुन कोई ना आए, तो तू चल अकेला,
चल अकेला, चल अकेला, चल तू अकेला ।
तेरा आह्वान सुन कोई ना आए, तो चल तू अकेला ।।

जब सबके मुंह पे पाश,
ओरे ओरे ओ अभागी! सबके मुंह पे पाश ।
हर कोई मुंह मोड़के बैठे, हर कोई डर जाय ।।

तब भी तू दिल खोलके, अरे! जोश में आकर,
मनका गाना गूंज तू अकेला ।
जब हर कोई वापस जाय ।।

ओरे ओरे ओ अभागी! हर कोई बापस जाय ।
कानन-कूचकी बेला पर सब कोने में छिप जाय ।।

👉लेखक – रवींद्र नाथ ठाकुर

हे मातृभूमि.. (9)

हे मातृभूमि ! तेरे चरणों में सिर नवाऊँ ।
मैं भक्ति भेंट अपनी, तेरी शरण में लाऊँ ।।

माथे पे तू हो चन्दन, छाती पे तू हो माला ।
जिह्वा पे गीत तू हो, तेरा ही नाम गाऊँ ।।


जिससे सपूत उपजें, श्रीराम-कृष्ण जैसे ।
उस धूल को मैं तेरी निज शीश पे चढ़ाऊँ ।।

माई समुद्र जिसकी पदरज को नित्य धोकर ।
करता प्रणाम तुझको, मैं वे चरण दबाऊँ ।।


सेवा में तेरी माता ! मैं भेदभाव तजकर ।
वह पुण्य नाम तेरा, प्रतिदिन सुनूँ सुनाऊँ ।।

तेरे ही काम आऊँ, तेरा ही मन्त्र गाऊँ ।
मन और देह तुझ पर बलिदान मैं चढ़ाऊँ ।।

ठहरो सुनो मेरे देश की स्वतंत्रता की कहानी..(10)

ठहरो सुनो मेरे देश की स्वतंत्रता की कहानी ।
अमर यौद्धाओं के इतिहास की कहानी ।।

हाँ यह आजादी हमने संघर्ष से पाई थी ।
पाने में इसे कई वीरों ने अपनी जान की बाजी लगाई थी ।।

तभी तो नाज है हमे हमारे वतन पर ।
उन यौद्धाओं के बलिदान के किस्सों पर ।।

दिन वह सबसे अनमोल है ।
जब आसमां में बिखरे थे आजादी के रंग ।।


झूम उठा था हर दिल ।
ख़ुशी से अपनों के संग ।।

वक्त कठिन था जब मुकाम हमारा था ।
हर देशभक्त की जुबां पर जयहिंद का नारा था ।।

उगते हुए सूरज में जज्बे की एक चमक सी थी ।
उड़ते हुए परिंदों में बुलंद हौसलों की एक उड़ान सी थी ।।

मेरे देश की यह कहानी तो एक अमर गाथा है ।
शौर्य निडरता और तत्परता का सटीक उदाहरण हैं ।।

👉लेखक – गुरप्रीत कौर बल

कुछ प्रसिद्ध कविताएँ :-

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